Monika garg

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लेखनी कहानी -13-May-2022#नान स्टाप चैलेंज# खुश रहो ना मां



माँ, मुझे आपकी ये बातें बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती। जब भी बात करो भाभी की शिकायत करने लगती हो।—माँ से फोन पर बात करते हुए मौलश्री ने कहा


जो जैसा करेगा वैसा ही तो बताऊंगी। —माँ की आवाज में कड़वाहट आ गई थी।


—अगर भाभी इतनी ही बुरी होती तो आपके साथ नहीं रहतीं ।आप से अलग हो कर आराम से रह सकती थीं।


—अलग तो तब होती जब सुयश तैयार होता वर्ना उसने तो कोशिश करी ही होगी।


—मां मैं फोन रख रही हूँ।


माँ की इस प्रकार की बातों से मौलश्री को बहुत चिढ़ होती । बेटियों और बहु के प्रति उनके व्यवहार में अन्तर देख कर उसे अपराध भाव की अनुभूति होती । परन्तु भाभी के स्वभाव से भी वह परिचित थी।उसको मालूम था कि भाभी घर के काम और बड़ों की सेवा से तो कभी पीछे नहीं हटती थीं, परन्तु मम्मी के हर बात में रोकटोक के कारण जब कभी भाभी चिढ़ जातीं तो उनका भाषा पर से नियंत्रण समाप्त हो जाता। अब दुखी होने की बारी मम्मी की होती। पापा की मृत्यु के बाद मम्मी कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो गईं थीं और भाभी उनके ज़ख्मों पर नमक लगा देतीं ।भाभी की हालत और आदत देख कर मौलश्री उनको तो कुछ कहती हमेशा माँ को ही समझाती । परन्तु माँ भी अब इस उम्र में कहाँ बदलने वाली थीं ।


मौलश्री को माँ के साथ ऐसा करके बहुत दुःख भी होता परन्तु वह भाभी के साथ भी अन्याय नहीं कर सकती थी।और फिर जब माँ को रहना तो भाभी के साथ ही है तो क्यों ना थोड़ा अपना व्यवहार बदल लेतीं हैं । हर वक्त बिना कुछ किए बेटियों की प्रशंसा और भाभी जो हर समय उनकी सेवा में हाजिर रहतीं, के लिये माँ के मुहँ से कभी तारीफ का एक शब्द भी ना निकलता।


चार दिन निकले होंगे कि माँ का फोन फिर आ गया।फोन उठाते ही बोलीं —नाराज है क्या, जो इतने दिन से फोन नहीं किया?


—नहीं माँ नाराज क्यों होऊँ भला?


—तो फिर फोन क्यों नहीं किया? तुम तो जानती ही हो अब मेरा तुम दोनों के अतिरिक्त और कौन है भला जिससे अपने मन की बात कर सकूँ ? तुम्हें क्या बताऊँ, मैं यहाँ कैसे रह रही हुँ ? दम घुटता है मेरा । पूरा दिन विनी मेरा कितना अनादर करती है । प्रकृति के बारे में भी भला बुरा कहती है।मुझसे सहन नहीं होता।आवाज से लग रहा था कि माँ रो रही थी।


मौलश्री ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए पूछा —क्या हुआ माँ, भाभी से फिर कहा-सुनी हो गई क्या?


माँ की आवाज मे क्रोध झलकने लगा —मुझसे जितना होता है बराबर का काम करती हूँ। विनी का पूरा ध्यान रखती हूँ । फिर भी आये दिन क्लेश करती है । कोई मेहमान आया नहीं कि मुहँ चढ़ जाता है।


इतने से ही मौलश्री को समझ आ गया था कि मेहमान कौन आया होगा —माँ प्रकृति दीदी आईं थीं क्या?


—एक वही तो यहाँ मेरी परवाह करती है।


—पर सेवा तो भाभी ही करती हैं ना।भूल गईं माँ, जब आपके पैर में फ्रेक्चर हुआ था तो भाभी ने कितनी सेवा की थी?


—तो क्या हुआ बहु का तो सेवा करने का धर्म ही है । हमने भी तो अपनी सास ससुर और नंद देवर सभी की सेवा करी है।


—पर माँ आप की स्थिति भी तो उस समय कितनी खराब थी। आप कितना थक जाती थीं और फिर अपना सारा गुस्सा हम तीनों भाई बहन पर उतारती थीं।


—तो क्या अब भी मैं ही खपती रहूँ?


—माँ खपने की कौन कह रहा है? परन्तु घर के छोटे मोटे काम में हाथ बंटाने से आपका ही स्वस्थ्य ठीक रहेगा।और आप ही तो कहती हो ना कि पहला सुख निरोगी काया।


बेटा काम करने में जोर नहीं आता परन्तु विनी के कड़वे बोल सहन नहीं होते।—और माँ की आवाज भर्राने लगी।


मौलश्री खुद भी अपने को मुश्किल से संभाल पा रही थी । माँ, भाभी जब ज्यादा थक जाती होंगी तो आ जाता होगा कभी उनको भी गुस्सा ।आप ध्यान क्यों देती हैं ।भैया बेचारे तो बीच में कुछ नहीं बोलते ना आपका और हम दोनों बहिनों का पूरा ध्यान रखते हैं ।वे पूरी कोशिश करते हैं कि हमें पिताजी की अनुपस्थिति का एहसास ना हो ।वह स्वयं भी तो पिताजी के जाने के बाद एकदम अकेले पड़ गए हैं।


—वो तो है बेटा, इसीलिए विनी की कोई बात उसको नहीं बताती, और अगर बता भी दूँगी तो भी वह उसको तो कुछ कहेगा नहीं , कह कर माँ ने फोन काट दिया।


माँ की ये बातें सुन सुन कर मौलश्री को ऊब होने लगी थी । उसको माँ की तकलीफ का एहसास था, परंतु वह भाभी की मजबूरी भी समझती थी । माँ की आवाज में छुपा दर्द रह रह कर उसको याद आ रहा था । रात को नींद भी नहीं आ रही थी । पति से पूछा— थोड़े समय के लिए माँ को यहाँ बुला लूँ क्या? बहुत याद आती है उनकी।


हर महीने दो महीने में तो तुम मिल कर आती हो —पति ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखते हुए कहा।


चार घण्टे में कोई मन नहीं भरता । मैं माँ को कुछ दिन यहाँ रखना चाहती हूँ।


तुम्हारी इच्छा हो जैसा करो —वैसे भी ऐसी परिस्थिति में कोई भी पति और क्या जवाब देता।


कल ही माँ को फोन करके यहाँ आने के लिए कह देती हूँ, यह निश्चय करने के बाद ही मौलश्री को नींद आयी।


अगली सुबह मौलश्री का एक एक पल बड़ी मुश्किल से निकल रहा था । पति के निकलते ही माँ को फोन लगाया और चहकते हुए बोली —कैसी हो माँ?


ठीक हूँ, पर आज तूने इतनी जल्दी फोन कैसे किया।कल ही तो बात हुई थी अपनी —माँ की आवाज में चिंता झलक रही थी।


ऐसे ही । माँ आप कुछ दिन के लिए यहाँ आ जाओ ना।—उतावलेपन से मौलश्री बिना कोई भूमिका बाँधे बोल पड़ी ।


—क्या कह रही है पगली ? माँ बेटी के घर कैसे रह सकती है? बहुत पाप लगता है ।


—यह फालतू की बात छोड़ो माँ । अब वक़्त बदल गया है । मुझे आपकी बहुत याद आ रही है।


पिछले महीने ही तो तू मिल कर गई थी।और फिर फोन पर भी बात करते रहते हैं । क्यों मुझे पाप का भागी बनाती है । मेरा अगला जन्म बिगड़ जाएगा बेटी के घर रहने से ।मैं तो कभी प्रकृति के घर भी नहीं गयी ।—माँ ने स्पष्टतया मौलश्री का निमंत्रण ठुकरा दिया था।


पाप शब्द सुन कर मौलश्री की जिद भी हार मान गई, और उसको रोना आने लगा। बड़ी मुश्किल से स्वयं को सम्भालते हुए बोली— ठीक है माँ, अभी रखती हूँ।आप अपना ध्यान रखना।

और बिना किसी प्रत्युत्तर का इंतजार किए उसने फोन काट दिया।दिल पर बोझ जैसे का तैसे ही रह गया।


दिन भर मौलश्री ने बहुत सोचा, उसको भाई, भाभी और माँ सभी अपने स्थान पर ठीक ही लगे । मौलश्री को समझ नहीं आ रहा था कि बिना भैया भाभी को दुखी किये वह माँ की तकलीफ कैसे दूर करे ।


दो तीन दिन सोचने के पश्चात आखिर उसने प्रकृति को फोन लगाया।


—अरे मौली, कैसी है तू? आज मेरी याद कैसे आ गई? कितनी बार कहा कि कभी दस पन्द्रह दिन के लिए आजा माँ के यहाँ, खूब मजे करेंगें । पर तू तो हमेशा बस चार घण्टे के लिये ही आती है।


हाँ दीदी में हर डेढ़ दो महीने में एक बार माँ से मिलने आ जाती हूँ । माँ को देख कर मेरे मन में तसल्ली आ जाती है, और घर में भी किसी को कोई असुविधा नहीं होती।—मौलश्री ने जान कर केवल घर कहा । कौन सा घर माँ का, या ससुराल वाला यह अंदाज लगाने का काम प्रकृति पर ही छोड़ दिया।


अच्छा अब कब आ रही है ।बच्चों को लेकर छुट्टी वाले दिन आ जा तो बबली गुड्डू भी पूरे दिन वहीं खेल लेंगे।—दीदी चिर परिचित चहकते हुए लहजे में बोलीं।


देखती हूँ दीदी । छुट्टी वाले दिन इनके खाने की तकलीफ पड़ेगी नहीं तो ऑफिस में ही मंगा कर खा लेते हैं।—मौलश्री के पति का नाम ना लेकर, यह, इनके इत्यादि शब्द काम में लेने पर भी उसकी बात सब समझ जाते हैं।


—क्यों ऑफिस से क्यों, सुबह का नाश्ता और दोपहर का टिफिन बना कर आ जाना और शाम का माँ के यहाँ से ही टिफिन ले जाना।मैं भी ऐसे ही करती हूँ।


—सोचती हूँ दीदी।अभी तो मैने इसलिए फोन किया है कि माँ बहुत उदास लगती हैं ।भाभी के व्यवहार से दुःखी हैं ।


—हाँ उन दोनों में खटपट चलती रहती है ।सास बहु में तो ऐसा होता रहता है । मैंने माँ को कितनी बार कहा कि विनी की बातों पर ज्यादा ध्यान मत दिया करो और मस्त रहा करो पर वह सुनती ही नहीं । मेरे और मेरी सास के मध्य भी यही होता था ऊपर से मेरी नन्द रोज रोज आ कर बैठ जाती थी।इसीलिए तो मैं अलग घर में रहने लगी अब कितनी शान्ति है । कोई बंदिश भी नहीं ।


हाँ दीदी यही तो मैं आपसे कह रही थी कि अब आपके तो कोई बंदिश है नहीं और इनको भी मैं मना लूँगी तो क्यों ना हम दोनों माँ को चार पाँच महीने के लिये अपने पास रख लें।आप उसी शहर में हैं तो पहले आप रख लो ताकि माँ को अपने घर से दूर रहने की आदत हो जाये फिर तीन महीने बाद मैं यहाँ ले आऊंगी —कह कर मौलश्री चुप हो गई और दूसरी तरफ से प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी परन्तु दीदी सोच में पड़ गई थीं इसलिए कोई प्रतिक्रिया दे नहीं पा रहीं थीं । कुछ क्षण बाद मौलश्री ने ही चुप्पी तोड़ी और बोली —क्यों दीदी ठीक है ना?


क्या? —दीदी जैसे किसी तन्द्रा से जागी हो —फिर कुछ सोच कर बोलीं तू पहले यहाँ तो आ फिर सोचते हैं ।


—ठीक है दीदी मैं आने का प्रोग्राम बनते ही बता दूँगी


—ठीक है।जय श्री कृष्ण


—जय श्रीकृष्ण दीदी


मौलश्री ने फोन रख कर मन ही मन भगवान से पीहर के लिये सुख शांति की प्रार्थना की और काम में लग गई ।


इस बार एक सप्ताह बीतने पर भी माँ का फोन नहीं आया तो मौलश्री ने ही फोन लगाया ।—माँ कैसी हो? इतने दिन हो गये आपने फोन नहीं किया?


अरे बेटा, अभी थोड़ा अचार पापड़ वगैरह बना रहे हैं तो विनी और मैं दोनों ही काम में व्यस्त हैं । तू तो कभी ले जाती ही नहीं वर्ना तेरे लिये भी बना दें।—माँ समान्य स्वर में बोलीं


—माँ हमारे यहाँ ये चीजें ज्यादा नहीं खाते और फिर थोड़े बहुत तो मैं भी बनाती हूँ ।


—हाँ जानती हूँ । इस बार तो प्रकृति ने भी मना कर दिया । कहती है कि हमारे यहाँ के अचार पापड़ उसके यहाँ कोई पसन्द नहीं करता ।इस हफ्ते तो आई भी एक ही बार । कह रही थी बच्चों की पढ़ाई बिगड़ जाती है रोज रोज आने से और अब बच्चे बड़ी कक्षा में भी आ गये हैं ।


—हाँ माँ, यह तो है। आजकल बच्चों की पढ़ाई का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है आगे नौकरी के लिए।


ठीक है बेटा बच्चों का ध्यान रखो और अपने अपने घरों में खुश रहो । इस बार तो बहुत थोड़े थोड़े ही सामान बनाये हैं तो जल्दी ही बन गए। अच्छा बाद में बात करती हूँ अभी थोड़ा काम करा दूँ । विनी को खाना भी बनाना है अभी। अकेली थक जायेगी।—वर्षों पश्चात माँ की बातों में शिकायत के नहीं संतोष के भाव थे।


हाँ माँ, आप और भाभी भी खुश रहो अपने घर में, अकेली अकेली आप दोनों थक जाओगी। मौलश्री ने मन में कहा।


अच्छा माँ, जय श्री कृष्ण।—और बिना किसी जवाब का इंतजार किए मौलश्री ने फोन काट दिया। उसको भी ईश्वर को धन्यवाद देने की जल्दी जो दी।


मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करते हुए उसके नेत्र भरे जा रहे थे। खुशी के आँसू वास्तव में दायीं आँख से पहले निकलते हैं, सोच कर उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गई ।

 

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4 Comments

Gunjan Kamal

23-Apr-2023 08:06 PM

👏👌

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अदिति झा

19-Apr-2023 06:26 PM

Nice

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shahil khan

18-Apr-2023 11:51 PM

nice

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